अलंकार
अलंकार
शब्द का शाब्दिक
अर्थ होता है- आभूषण।
काव्य
रूपी काया की शोभा
बढ़ाने वाले अवयव
को अलंकार कहते
हैं।
दुसरे
शब्दों में जिस
प्रकार आभूषण शरीर
की शोभा बढ़ते हैं, उसी
प्रकार अलंकार
साहित्य या काव्य
को सुंदर व् रोचक
बनाते हैं।
अलंकार के तीन
भेद होते हैं।
1) शब्दालंकार
2) अर्थालंकार
3) उभयालंकार
1. शब्दालंकार
जहाँ
शब्दों के प्रयोग
से सौंदर्य में
वृद्धि होती है
और काव्य में चमत्कार
आ जाता है, वहाँ
शब्दालंकार माना
जाता है।
इसके चार प्रकार
होते है।
(i) अनुप्रास
अलंकार
(ii) श्लेष अलंकार
(iii) यमक अलंकार
(iv) वक्रोती
अलंकार
I. अनुप्रास अलंकार
जब
किसी वर्ण की आवृति
बार-बार हो कम से कम
तीन बार वहाँ अनुप्रास
अलंकार होता है।
उदाहरण:-
मुदित
महीपति मंदिर आए।
सेवक सचिव सुमंत्र
बुलाए।
यहाँ
पहले पद में 'म'
वर्ण की आवृत्ति
और दूसरे में
'स' वर्ण की
आवृत्ति हुई है।
अनुप्रास अलंकार
के तीन प्रकार
है-
(क) छेकानुप्रास
(ख) वृत्यनुप्रास
(ग) लाटानुप्रास
II. श्लेष अलंकार
जहाँ
कोई शब्द एक ही
बार प्रयुक्त हो, किन्तु
प्रसंग भेद में
उसके अर्थ एक से
अधिक हों, वहां
शलेष अलंकार है।
उदाहरण:-
रहिमन
पानी राखिए बिन
पानी सब सून ।
पानी
गए न ऊबरै मोती
मानस चून ।।
यहाँ
पानी के तीन अर्थ
हैं
- कान्ति
, आत्म - सम्मान
और जल,
तथा पानी शब्द
एक ही बार प्रयुक्त
है तथा उसके अर्थ
तीन हैं।
III. यमक अलंकार
जहाँ
शब्दों या वाक्यांशों
की आवृति एक से
अधिक बार होती
है,
लेकिन उनके अर्थ
सर्वथा भिन्न होते
हैं,वहाँ यमक
अलंकार होता है।
उदाहरण:-
कनक-कनक
से सो गुनी, मादकता अधिकाय,
वा
खाय बौराय जग, या
पाय बोराय।।'
यहाँ
कनक शब्द
की दो बार आवृत्ति
हुई है जिसमे एक
कनक का अर्थ है- धतूरा और
दूसरे का स्वर्ण
है।
IV. वक्रोक्ति अलंकार
जहाँ
किसी बात पर वक्ता
और श्रोता की किसी
उक्ति के सम्बन्ध
में,अर्थ कल्पना
में भिन्नता का
आभास हो, वहाँ
वक्रोक्ति अलंकार
होता है।
उदाहरण:-
कहाँ
भिखारी गयो यहाँ
ते,
करे
जो तुव पति पालो।
2. अर्थालंकार
जिस
वाक्य पंक्ति में
अर्थ के कारण चमत्कार
या सुंदरता उत्पन्न
हो,
उसे अर्थालंकार
कहते है।
अर्थालंकार
के भाग –
(i) उपमा
(ii) रूपक
(iii) उत्प्रेक्षा
अलंकार
(iv) विभावना
(v) अनुप्रास
I. उपमा
जहाँ
गुण
, धर्म या क्रिया
के आधार पर उपमेय
की तुलना उपमान
से की जाती है।
उदाहरण:-
हरिपद
कोमल कमल से ।
हरिपद ( उपमेय
)की तुलना कमल
(उपमान) से
कोमलता के कारण
की गई । अत: उपमा
अलंकार है ।
II. रूपक
जहाँ
उपमान और उपमेय
के भेद को समाप्त
कर उन्हें एक कर
दिया जाय, वहाँ
रूपक अलंकार होता
है।
उदाहरण:-
उदित
उदय गिरि मंच पर, रघुवर
बाल पतंग।
विगसे
संत-सरोज सब, हरषे
लोचन भृंग।।
III. उत्प्रेक्षा
अलंकार
उपमेय
में उपमान की कल्पना
या सम्भावना होने
पर उत्प्रेक्षा
अलंकार होता है।
उदाहरण:-
सोहत
ओढ़े पीत पट, श्याम
सलोने गात।
मनहु
नील मणि शैल पर, आतप
परयो प्रभात।।
IV. विभावना
जहां
कारण के अभाव में
भी कार्य हो रहा
हो
, वहां विभावना
अलंकार है।
उदाहरण:-
बिनु
पग चलै, सुनै बिनु
काना ।
कर
बिनु कर्म करे
विधि नाना ।।
V.
अनुप्रास
जहां
किसी वर्ण की अनेक
बार क्रम से आवृत्ति हो
वहां अनुप्रास
अलंकार होता है।
उदाहरण:-
चारु- चन्द्र
की चंचल किरणें,
खेल
रही थी जल- थल
में।
3. उभयालंकार
जहाँ
काव्य में शब्द
और अर्थ दोनों
का चमत्कार एक
साथ
उत्पन्न होता
है। वहाँ उभयालंकार
होता है।
उदाहरण:-
मेखलाकर पर्वत
अपार |
अपने सहस्त्र
दृग सुमन फाड़ ||
9 Comments
asd
ReplyDeleteHii
DeleteSir alankar kise kahate hain iski full pdf mil skti hai kya
ReplyDeletepls sir provide kr dijiye
Ha
DeleteNice bhai bahut acchaa. Hai ye mera whatsapp no hai 7897278877 please es par kuch bheje mai class 10 me hoo please sir
ReplyDeleteBest
ReplyDeleteWorst blog ever😤😤
ReplyDeleteआपका अर्थालंकार के भेद गलत है वहां पर अनुप्रास नहीं होगा क्योंकि अनुप्रास शब्दालंकार में है
ReplyDeleteSir,, anupras alankar ke jagah par manvikaran alankar hoga arthalankar ke types me
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